क बड़ा फ़र्क तो इसके तहत कवर की जाने वाली आबादी का है. उदाहरण के लिए
ब्रिटेन में लोग नेशनल हेल्थ सर्विस का हिस्सा हैं और सरकारी अस्पतालों में
उनका मुफ्त इलाज होता है. लेकिन मोदीकेयर भारत के उन ग़रीबों को ध्यान में
रखकर बनाई गई योजना है, जो स्वास्थ्य सुविधाओं का ख़र्च उठा ही नहीं सकते.
अगर हम अमरीका के ओबामा केयर की बात करें तो उसके तहत अमरीका के प्रत्येक नागरिक का बीमा है. इसके बाद सरकार नागरिकों की ओर से भुगतान किए गए प्रीमियम पर सब्सिडी देती है. हालांकि ट्रंप प्रशासन में यह योजना प्रीमियम की दरों और बीमा कवर की कोई सीमा न होने को लेकर विवादों में घिर गई है. लेकिन भारत की प्रधानमंत्री जन औषधि योजना सभी के लिए अनिवार्य नहीं है और योग्य लाभार्थियों के लिए भी कवर की अधिकतम सीमा पांच लाख रुपये तय है.
कई ग़ैर-भाजपा शासित प्रदेश अब भी इस योजना से नहीं जुड़े हैं और सरकार उन्हें मनाने की कोशिशें कर रही है.
एक बड़ी बाधा फर्जीवाड़े और सिस्टम के दुरुपयोग को रोकने की भी होगी.
इसके लिए सरकार डिजिटल तकनीक और लाभार्थियों और उनके बिल की जांच करने वाले ज़मीनी स्तर के स्टाफ पर काफी निर्भर है.
आयुष्मान भारत के सीईओ इंदु भूषण कहते हैं, "हमारे पास मज़बूत आईटी बैकअप है, जिसकी मदद से हम पहचान और जांच दोनों करेंगे. ऐसा नहीं होगा कि कोई भी जाकर इस योजना का फायदा ले पाएगा."
ख़ामनेई ने वैसे तो किसी देश का नाम नहीं लिया है लेकिन ईरान अतीत में अपने क्षेत्रीय प्रतिद्वंद्वी सऊदी अरब पर ईरान के अरब अल्पसंख्यकों के बीच विभाजनकारी गतिविधियों को समर्थन देने का आरोप लगाता रहा है.
शनिवार को हुए हमले की ज़िम्मेदारी अरब ग्रुप अहवाज़ नेशनल रसिस्टेंस और इस्लामिक स्टेट ने ली थी. लेकिन किसी ने भी हमले का सबूत नहीं दिया.
हमले के बाद ईरान के विदेश मंत्री जवाद ज़रीफ़ ने कहा था कि हमलावरों को विदेशी 'सरकारों से वित्तीय मदद मिली थी'. उन्होंने ये भी कहा कि ईरान " चरमपंथ को मदद करने वाले क्षेत्रीय देशों और उनके आका अमरीका को इस हमले के लिए ज़िम्मेदार ठहराता है.
देश की राष्ट्रीय न्यूज़ एजेंसी 'इरना' की एक रिपोर्ट के मुताबिक़, ईरान ने ब्रिटेन, नीदरलैंड और डेनमार्क के उच्चायुक्तों के समन देते हुए आरोप लगाया है कि उनके देश ईरान विरोधी संगठनों को शरण दे रहे हैं.
विदेश मंत्रालय के प्रवक्ता बहरम कसेमी ने कहा "ये बात किसी भी तरह से स्वीकार्य नहीं है कि यूरोपीय संघ ने इन संगठनों का नाम आतंकवादी संगठनों की सूची में सिर्फ़ इसलिए नहीं रखा है क्योंकि इन्होंने अभी तक यूरोप में कोई हमला नहीं किया है."
रिपोर्ट्स की माने तो मिलिट्री परेड के दौरान मारे गए ज़्यादातर लोग रेवोल्यूशनरी गार्ड के सदस्य थे, जो ख़ामनेई के अधीन थे.
हालांकि ख़ामनेई ने अभी तक किसी संगठन का नाम नहीं लिया है. लेकिन ईरान इससे पहले अपने क्षेत्रीय दुश्मन सऊदी अरब पर आरोप लगाता रहा है कि वो सरकार विरोधी संगठनों को मदद करता है.
ईरान की समाचार एजेंसी फार्स के अनुसार यह हमला शनिवार को स्थानीय समय के मुताबिक़ सुबह नौ बजे शुरू हुआ और क़रीब दस मिनट तक गोलियां चलती रहीं. एजेंसी के मुताबिक़ ये माना जा रहा है कि हमले में चार लोग शामिल थे. इस हमले में महिलाओं, बच्चों समेत कई नागरिकों की भी मौत हुई है.
ईरना समाचार एजेंसी के मुताबिक इस हमले में किसी भी पत्रकार की मौत नहीं हुई है. रिपोर्ट में बताया गया है कि हमलावरों ने आमलोगों पर गोलियां चलाईं और मंच पर मौजूद सैन्य अधिकारियों को निशाना बनाने की कोशिश की.
रिपोर्टों में बताया गया है कि पुलिस ने दो हमलावरों को मार गिराया जबकि दो अन्य गिरफ़्तार किए गए हैं.
ईरान के रिवॉल्यूशनरी गार्ड्स के प्रवक्ता ने कहा कि यह हमला सुन्नी अलगाववादियों ने किया है. यह सैन्य परेड ईरान-इराक युद्ध की शुरुआत की 30वीं सालगिरह को मनाने के लिए आयोजित की गई थी.
बीबीसी पर्शियन सेवा के पत्रकार सियावाश मेहदी अर्दलान के अनुसार, हमले की ज़िम्मेदारी दो संगठनों ने ली है. अगर इसके पीछे अलगाववादी संगठनों का हाथ है तो ईरान के लिए ये एक संकेत है कि सात साल बाद वो दोबारा से खड़े हो रहे हैं और अगर इसके पीछे इस्लामिक संगठन का हाथ है तो यह ईरान के ख़ुफ़िया विभाग की असफलता है, क्योंकि इससे पहले भी आईएस ईरान में हमला कर चुका है.
अभी तक ईरान ने इस हमले में किसी विदेशी ताक़त के शामिल होने का कोई सबूत नहीं दिया है लेकिन बदला लेने की बात ज़रूर कह दी है. अगले सप्ताह यूएन जनरल असेंबली की मीटिंग होने वाली है, जहां सभी देश होंगे. ऐसे में अमरीका क्या जवाब देगा, ये देखना काफी महत्वपूर्ण होगा.
अगर हम अमरीका के ओबामा केयर की बात करें तो उसके तहत अमरीका के प्रत्येक नागरिक का बीमा है. इसके बाद सरकार नागरिकों की ओर से भुगतान किए गए प्रीमियम पर सब्सिडी देती है. हालांकि ट्रंप प्रशासन में यह योजना प्रीमियम की दरों और बीमा कवर की कोई सीमा न होने को लेकर विवादों में घिर गई है. लेकिन भारत की प्रधानमंत्री जन औषधि योजना सभी के लिए अनिवार्य नहीं है और योग्य लाभार्थियों के लिए भी कवर की अधिकतम सीमा पांच लाख रुपये तय है.
कई ग़ैर-भाजपा शासित प्रदेश अब भी इस योजना से नहीं जुड़े हैं और सरकार उन्हें मनाने की कोशिशें कर रही है.
एक बड़ी बाधा फर्जीवाड़े और सिस्टम के दुरुपयोग को रोकने की भी होगी.
इसके लिए सरकार डिजिटल तकनीक और लाभार्थियों और उनके बिल की जांच करने वाले ज़मीनी स्तर के स्टाफ पर काफी निर्भर है.
आयुष्मान भारत के सीईओ इंदु भूषण कहते हैं, "हमारे पास मज़बूत आईटी बैकअप है, जिसकी मदद से हम पहचान और जांच दोनों करेंगे. ऐसा नहीं होगा कि कोई भी जाकर इस योजना का फायदा ले पाएगा."
ईरान के सर्वोच्च नेता अयातुल्लाह अली ख़ामनेई ने कहा है कि 'अमरीका की कठपुतलियां' ईरान में डर पैदा करने की कोशिश कर रही हैं.
ख़ामनेई
का ये बयान शनिवार को दक्षिण पश्चिमी शहर अहवाज़ में सैन्य परेड के दौरान
हुए हमले के बाद आया है. इस हमले में एक बच्चे समेत 25 लोगों की मौत हो गई
थी. ख़ामनेई ने वैसे तो किसी देश का नाम नहीं लिया है लेकिन ईरान अतीत में अपने क्षेत्रीय प्रतिद्वंद्वी सऊदी अरब पर ईरान के अरब अल्पसंख्यकों के बीच विभाजनकारी गतिविधियों को समर्थन देने का आरोप लगाता रहा है.
शनिवार को हुए हमले की ज़िम्मेदारी अरब ग्रुप अहवाज़ नेशनल रसिस्टेंस और इस्लामिक स्टेट ने ली थी. लेकिन किसी ने भी हमले का सबूत नहीं दिया.
हमले के बाद ईरान के विदेश मंत्री जवाद ज़रीफ़ ने कहा था कि हमलावरों को विदेशी 'सरकारों से वित्तीय मदद मिली थी'. उन्होंने ये भी कहा कि ईरान " चरमपंथ को मदद करने वाले क्षेत्रीय देशों और उनके आका अमरीका को इस हमले के लिए ज़िम्मेदार ठहराता है.
देश की राष्ट्रीय न्यूज़ एजेंसी 'इरना' की एक रिपोर्ट के मुताबिक़, ईरान ने ब्रिटेन, नीदरलैंड और डेनमार्क के उच्चायुक्तों के समन देते हुए आरोप लगाया है कि उनके देश ईरान विरोधी संगठनों को शरण दे रहे हैं.
विदेश मंत्रालय के प्रवक्ता बहरम कसेमी ने कहा "ये बात किसी भी तरह से स्वीकार्य नहीं है कि यूरोपीय संघ ने इन संगठनों का नाम आतंकवादी संगठनों की सूची में सिर्फ़ इसलिए नहीं रखा है क्योंकि इन्होंने अभी तक यूरोप में कोई हमला नहीं किया है."
रिपोर्ट्स की माने तो मिलिट्री परेड के दौरान मारे गए ज़्यादातर लोग रेवोल्यूशनरी गार्ड के सदस्य थे, जो ख़ामनेई के अधीन थे.
हालांकि ख़ामनेई ने अभी तक किसी संगठन का नाम नहीं लिया है. लेकिन ईरान इससे पहले अपने क्षेत्रीय दुश्मन सऊदी अरब पर आरोप लगाता रहा है कि वो सरकार विरोधी संगठनों को मदद करता है.
ईरान की समाचार एजेंसी फार्स के अनुसार यह हमला शनिवार को स्थानीय समय के मुताबिक़ सुबह नौ बजे शुरू हुआ और क़रीब दस मिनट तक गोलियां चलती रहीं. एजेंसी के मुताबिक़ ये माना जा रहा है कि हमले में चार लोग शामिल थे. इस हमले में महिलाओं, बच्चों समेत कई नागरिकों की भी मौत हुई है.
ईरना समाचार एजेंसी के मुताबिक इस हमले में किसी भी पत्रकार की मौत नहीं हुई है. रिपोर्ट में बताया गया है कि हमलावरों ने आमलोगों पर गोलियां चलाईं और मंच पर मौजूद सैन्य अधिकारियों को निशाना बनाने की कोशिश की.
रिपोर्टों में बताया गया है कि पुलिस ने दो हमलावरों को मार गिराया जबकि दो अन्य गिरफ़्तार किए गए हैं.
ईरान के रिवॉल्यूशनरी गार्ड्स के प्रवक्ता ने कहा कि यह हमला सुन्नी अलगाववादियों ने किया है. यह सैन्य परेड ईरान-इराक युद्ध की शुरुआत की 30वीं सालगिरह को मनाने के लिए आयोजित की गई थी.
बीबीसी पर्शियन सेवा के पत्रकार सियावाश मेहदी अर्दलान के अनुसार, हमले की ज़िम्मेदारी दो संगठनों ने ली है. अगर इसके पीछे अलगाववादी संगठनों का हाथ है तो ईरान के लिए ये एक संकेत है कि सात साल बाद वो दोबारा से खड़े हो रहे हैं और अगर इसके पीछे इस्लामिक संगठन का हाथ है तो यह ईरान के ख़ुफ़िया विभाग की असफलता है, क्योंकि इससे पहले भी आईएस ईरान में हमला कर चुका है.
अभी तक ईरान ने इस हमले में किसी विदेशी ताक़त के शामिल होने का कोई सबूत नहीं दिया है लेकिन बदला लेने की बात ज़रूर कह दी है. अगले सप्ताह यूएन जनरल असेंबली की मीटिंग होने वाली है, जहां सभी देश होंगे. ऐसे में अमरीका क्या जवाब देगा, ये देखना काफी महत्वपूर्ण होगा.
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